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English » Hindi - 6 finalists


From "Letters from a Self-Made Merchant to His Son" by George Horace Lorimer. 320 words
I remember reading once that some fellows use language to conceal thought, but it's been my experience that a good many more use it instead of thought.

A businessman's conversation should be regulated by fewer and simpler rules than any other function of the human animal. They are:

Have something to say.

Say it.

Stop talking.

Beginning before you know what you want to say and keeping on after you have said it lands a merchant in a lawsuit or the poorhouse, and the first is a short cut to the second. I maintain a legal department here, and it costs a lot of money, but it's to keep me from going to law.

It's all right when you are calling on a girl or talking with friends after dinner to run a conversation like a Sunday-school excursion, with stops to pick flowers; but in the office your sentences should be the shortest distance possible between periods. Cut out the introduction and the peroration, and stop before you get to secondly. You've got to preach short sermons to catch sinners; and deacons won't believe they need long ones themselves. Give fools the first and women the last word. The meat's always in the middle of the sandwich. Of course, a light butter on either side of it doesn't do any harm if it's intended for a man who likes butter.

Remember, too, that it's easier to look wise than to talk wisdom. Say less than the other fellow and listen more than you talk; for when a man's listening he isn't telling on himself and he's flattering the fellow who is. Give most men a good listener and most women enough note-paper and they'll tell all they know. Money talks -- but not unless its owner has a loose tongue, and then its remarks are always offensive. Poverty talks, too, but nobody wants to hear what it has to say.

The winning and finalist entries are displayed below.To view the like/dislike tags the entries received simply click on the "view all tags" link on the right hand corner of each entry.

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Congratulations to the winners and thanks to all the participants!






Entry #1 - Points: 26 - WINNER!
Pundora
Pundora
India
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मुझे याद आता है, मैंने कहीं पढ़ा था कि कुछ लोग सोच-विचार पर पर्दा डालने के लिए भाषा का इस्तेमाल करते हैं, लेकिन मेरा अनुभव रहा है कि बड़ी संख्या में दूसरे लोग इसका इस्तेमाल सोच-विचार के स्थान पर करते हैं.

एक कारोबारी की बातचीत, इस मानव रूपी जीव के किसी भी अन्य कार्य की तुलना में कम और सरल नियमों से विनियमित होनी चाहिए. ये नियम हैं:

कहने के लिए आपके पास कोई सार्थक बात होनी चाहिए.

उसे कह दें.

फिर चुप हो जाएं.

आप क्या कहना चाहते हैं, यह मालूम होने से पहले ही बोलना शुरू करना और फिर उसे कह देने के बाद भी बोलते जाना, एक व्यापारी को मुकदमेबाजी अथवा कंगाली में धकेल देता है, और कंगाली की ओर बढ़ने का सरल मार्ग है मुकदमबाजी में फंसना. मैंने यहां एक पूरा कानूनी विभाग रखा हुआ है, और इस पर बहुत खर्च आता है, लेकिन यह मुझे कानूनी कार्यवाहियों से दूर रखने के लिए ही है.

रविवार की स्कूल-पिकनिक पर जाने जैसा वार्तालाप तब तो ठीक है जब आप किसी लड़की से मुलाकात कर रहे हों या दोस्तों के साथ रात के खाने के बाद बात कर रहे हों, जब फूलों के चुनाव के लिए ही विराम लेना पड़े; लेकिन कार्यालय में आपके वाक्य छोटे से छोटे और सधे हुए होने चाहिए. लंबी भूमिका और भाषण को हटा दें, और दूसरी बात आरंभ करने से पहले रुकें. पापकर्मियों को पहचानने के लिए संक्षिप्त प्रवचनों की आवश्यकता होती है; और गिरिजाघर के अधिकारी भी नहीं मानेंगे कि खुद उन्हें लंबे प्रवचनों की आवश्यकता है. मूर्खों को सबसे पहले और महिलाओं को सबसे अंत में मौका दें. बातचीत का सार तो बीच के हिस्से में ही होता है. निस्संदेह, दोनों ओर थोड़ी जायकेदार बातें करने से कोई नुकसान नहीं होगा, लेकिन तभी जब वह ऐसे व्यक्ति को कही जाए, जिसे वह पसंद हो.

और, यह भी याद रखें कि बुद्धिमतापूर्ण बातें करने से आसान है बुद्धिमान दिखाई देना. सामने वाले की तुलना में कम बोलें, और जितना आप बोलें उससे ज्यादा सुनें; क्योंकि जब कोई व्यक्ति सुन रहा होता है तो वह मेहनत नहीं कर रहा होता और मेहनत कर रहे व्यक्ति को प्रसन्न कर रहा होता है. अधिकांश पुरुषों को एक अच्छा श्रोता और अधिकांश महिलाओं को लिखने के लिए खूब सारा कागज देकर देखें, आप पाएंगे कि वे वह सब कुछ व्यक्त कर देंगे जो वे जानते हैं. पैसा बोलता है-- लेकिन तब तक नहीं जब तक उसके मालिक की जुबान बेकाबू न हो, और फिर इसकी बातें हमेशा आक्रामक होती हैं. बोलती तो गरीबी भी है, लेकिन उसके पास बोलने के लिए जो होता है, उस पर कोई भी कान नहीं देना चाहता.



Entry #2 - Points: 20
anonymousView all tags
मुझे याद है एक बार मैंने कहीं पढ़ा था कि कुछ लोग भाषा का इस्तेमाल विचार छुपाने के लिए करते हैं परंतु मेरा अनुभव यह कहता है कि उनसे भी कहीं ज़्यादा इसका इस्तेमाल विचार की जगह करते हैं ।

एक व्यापारी की बात-चीत इन्सान-रूपी जानवर के किसी भी अन्य काम के मुकाबले बहुत कम और आसान नियमों द्वारा नियंत्रित होनी चाहिए । ये नियम हैं:

कहने के लिए कुछ होना ।

उसे कहना ।

चुप हो जाना ।

आप क्या कहना चाहते हैं यह जाने बिना बोलना शुरू करने और उसे कहने के बाद भी बोलते रहने के कारण ही व्यापारी मुकदमे या दरिद्रनिवास तक पहुँच जाते हैं और इनमें से पहला दूसरे तक पहुँचने का छोटा रास्ता है । मेरे दफ़्तर में एक कानून विभाग है और इस पर बहुत पैसा खर्च होता है मगर इसका उद्देश्य मुझे कानूनी झमेलों से बचाना है ।

जब आप किसी लड़की से या भोजन-पश्चात मित्रों से बात कर रहें हों तो यूँ ही चलते-फिरते, बीच में फूल तोड़ने जैसे अन्य काम करने के लिए रुकते हुए, बात करने में कोई हर्ज़ नहीं; परंतु दफ़्तर में आपके वाक्य जितने छोटे हो सकें होने चाहियें । भूमिका और उपसंहार को छोटा रखें और दूसरा पहलू कहने से पहले ही चुप हो जाएं । पापियों को पकड़ने के लिए आपको छोटे भाषण देने होंगे; और डीकन (छोटे पादरी) यह नहीं मानेंगे कि उन्हें लंबे भाषणों की ज़रूरत है । मूर्खों को बात-चीत शुरू और स्त्रियों को बात-चीत का अंत करने दें । माँस हमेशा सैंडविच के बीच होता है । बेशक अगर यह किसी ऐसे व्यक्ति के लिए है जिसे मक्खन पसंद है तो दोनों तरफ हल्का मक्खन लगाने में कोई हर्ज़ नहीं ।

साथ ही यह भी याद रखें कि बुद्धिमान लगना बुद्धिमानी की बात करने से ज़्यादा आसान है । सामने वाले से कम कहें और जितना आप बोलते हैं उससे ज़्यादा सुनें क्योंकि सुनते समय आदमी की कमियां सामने नहीं आतीं और वह वक्ता को खुश करता है । अधिकतर पुरुषों को एक अच्छा श्रोता और अधिकतर स्त्रियों को काफ़ी कागज़ दें और वे आपको वह सब बताएंगे जो वे जानते/ जानतीं हैं । पैसा बोलता है – परंतु तभी जब इसका मालिक वाचाल हो और तब इसकी टिप्पणियां सदा अप्रिय लगतीं हैं । गरीबी भी बोलती है मगर कोई भी इसकी बात सुनना नहीं चाहता ।




Entry #3 - Points: 14
Manmohan Kaur
Manmohan Kaur
United States
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मुझे याद है कि मैने एक बार पढ़ा था कि कुछ व्यक्ति भाषा का इस्तेमाल विचारों को छुपाने के लिए करते हैं, लेकिन मेरा अनुभव यह रहा है कि उनसे भी अधिक व्यक्ति विचार की जगह भाषा का प्रयोग करते हैं।

एक व्यवसायी की बातचीत, मनुष्य जैसे जीव के किसी भी अन्य कार्य की अपेक्षा, थोड़े और सामान्य नियमों द्वारा नियंत्रित होनी चाहिए। वे हैं:

कहने के लिए कुछ हो।

कह दो।

बातें करना बंद करो।

आप क्या कहना चाहते हो यह जानने से पहले ही बोलना शुरू कर देना और कह देने के बाद भी बोलते ही रहना, एक व्यापारी को या तो एक अभियोग में फँसा देता है या पूरी तरह गरीब बना देता है, और पहला दूसरे तक पहुँचने का एक छोटा रास्ता है। मैने यहाँ एक कानूनी विभाग बना रखा है, और उस पर काफी पैसा खर्च होता है, लेकिन यह मुझे कानूनी झगड़ों से बचाए रखने के लिए है।

यह तब ठीक है, जब तुम किसी एक लड़की से बात करते हो या रात के भोजन के बाद अपने मित्रों से फुरसत में बातचीत को कायम रखने के लिए इधर-उधर की बात करते हो; लेकिन काम पर जितना संभव हो आपके वाक्य संक्षिप्त होने चाहिये। आरम्भिक बात और बात के आखिरी भाग को छोड़ दो, और दूसरे पर पहुँचने से पहले रूको। तुम्हे पापियों को पकड़ने के लिए छोटे धर्मोपदेशों में प्रवचन देना होगा, और पादरी भी यकीन नहीं करेंगे कि उन्हें खुद को लंबे धर्मोपदेशों की ज़रूरत है। मूर्खों को सबसे पहले और महिलाओं को आखिरी बात कहने दो। मीट हमेशा सैंडविच के मध्य में ही होता है। निस्संदेह, इसके दोनो ओर हल्का सा मक्खन लगाने से कोई नुकसान नहीं होगा बशर्ते कि यह एक ऐसे व्यक्ति के लिए है जिसे मक्खन पसंद है।

यह भी याद रखो, अक्लमंदी से बात करने से ज्यादा बुद्धिमान दिखना आसान है। दूसरे व्यक्ति की अपेक्षा कम बात करो, और बात करने से ज्यादा सुनो; क्योंकि जब एक व्यक्ति बात सुनता है तब वह अपने राज़ नहीं खोलता बल्कि जो बता रहा है उसकी झूठी प्रशंसा करता है। यदि तुम आदमियों को एक अच्छा श्रोता और औरतों को पर्याप्त कागज दो तो जो कुछ भी उन्हें पता है वे सब बता देंगें। पैसा बोलता है – पर तब तक नहीं जब तक उसके मालिक की ज़बान खुली हो, और तब उसकी बाते हमेशा अप्रिय होती हैं। गरीबी भी बोलती है, लेकिन जो वह कहना चाहती है उसे कोई सुनने के लिए तैयार नहीं।



Entry #4 - Points: 9
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मुझे याद है, मैंने कभी पढ़ा था कि कुछ लोग भाषा का इस्तेमाल विचारों को छिपाने के लिए करते हैं, लेकिन मेरा अनुभव यह है कि उससे कहीं ज़्यादा इसका इस्तेमाल लोग खुद विचार के स्थान पर करते हैं।

मानव पशु के किसी और काम की तुलना में, एक व्यापारी की बातचीत के नियम कम और सरल होने चाहिए। वे हैं:

कहने के लिए कुछ हो।

इसे कहो।

बात करना बंद करो।

आप क्या कहना चाहते हैं, इससे पहले शुरू करने और अपनी बात ख़त्म करने के बाद कुछ बचाए रखने से व्यापारी या तो अदालत में पहुँच जाएगा या अनाथालय में, और इनमें से पहला दूसरे का शॉर्टकट है। मैं यहाँ एक क़ानूनी विभाग का रखरखाव करता हूँ, और इसमें बहुत ख़र्च होता है, लेकिन यह मुझे क़ानूनी चक्करों से बचाता है।

जब आप किसी लड़की को कॉल कर रहे हों या रात के भोजन के बाद अपने दोस्तों के साथ बात कर रहे हों, तो यह ठीक है कि बातचीत स्कूल के रविवार के भ्रमण की तरह चले जिसमें आप फूल लेने के लिए रुक जाते हैं; लेकिन दफ़्तर में, दो पूर्णविरामों के बीच आपके वाक्यों की लंबाई कम-से-कम होनी चाहिए। भूमिका और चर्चा को निकाल दें, और "दूसरे..." तक जाने से ही पहले रुक जाएँ। पापियों को पकड़ने के लिए आपको उपदेश छोटे करने होंगे; और उप-पादरी खुद नहीं मानते कि उपदेश लंबे होने चाहिए। मूर्खों को पहला शब्द दें और महिलाओं का आखिरी। मांस हमेशा सैंडविच के बीच में होता है। निश्चित रूप से, इसकी किसी भी तरफ़ हल्का मक्खन लगाने से कोई नुक़सान नहीं होता, अगर यह उस आदमी के लिए हो जिसे मक्खन पसंद है।

यह भी याद रखें कि ज्ञान की बातें करने के बजाय ज्ञानी दिखना ज़्यादा आसान है। दूसरे आदमी के बजाय कम बोलें और उससे ज़्यादा सुने जितना आप बोलें; क्योंकि जब आदमी सुनता है तो वह अपने बारे में बात नहीं करता और वह उस व्यक्ति की तारीफ़ करता है जो वह है। ज़्यादातर पुरुषों को अच्छा श्रोता दे दो और ज़्यादातर महिलाओं को लिखने के लिए काफ़ी काग़ज़, और वे आपको वह सब बता देंगे जो वे जानते हैं। पैसा बोलता है - लेकिन तब तक नहीं जब तक उसके मालिक की जबान ढीली न हो, और उसकी टिप्पणियाँ हमेशा आक्रामक होती हैं। ग़रीबी भी बोलती है, लेकिन कोई नहीं सुनना चाहता कि वह क्या कहना चाहती है।



Entry #5 - Points: 6
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मुझे याद पड़ता है कि मैंने एक बार पढ़ा था कुछ लोग अपने विचारों पर भाषा का लेप चढ़ाकर अपने विचारों को दूसरों से छिपाए रखते हैं। लेकिन मेरा अनुभव यह रहा है कि इससे कहीं अधिक संख्‍या में लोग विचारों के स्थान पर इसे प्रयोग करते हैं।

किसी व्‍यापारी के वार्तालाप को अन्‍य किसी भी मानवीय कार्य के मुकाबले कम तथा सरल नियमों से नियमित होना चाहिए। वे हैं;

कहने के लिये कुछ हो।

कह दें।

वार्तालाप का अंत कर दें।

आप क्‍या कहना चाहते हैं यह जानने से पहले ही शुरूआत करने से और अपनी बात कह लेने के बाद उस पर अडे़ रहने से व्‍यापारी कानूनी वाद या किसी दरिद्रालय में फंस जाता है। और कानूनी वाद में फंसना भी जेल जाने का शॉर्टकट ही है। मैं यहां एक कानूनी विभाग को व्यवस्थित रखता हूं और उसके लिए बहुत पैसा खर्च होता है, लेकिन यह मुझे कानून के पास जाने से रोकने के लिए है।

यदि आप किसी लड़की से मिल रहे हैं या रात्रिभोज के बाद दोस्‍तों के साथ वैसी ही लंबी बातें कर रहे हैं जैसी रविवार को स्‍कूल से निकलने के बाद करते हैं तो इसमें कोई बुराई नहीं है, हो सकता है इस दौरान आप फूल तोड़ने के लिए रास्‍ते में रुक भी जाएं; लेकिन कार्यालय मे हमारे वाक्‍य यथासंभव संक्षिप्त होने चाहिए और उनके बीच ठहराव होने चाहिए। भूमिकाओं और भाषणों को निकाल दें, और दूसरी बात कहने से पहले रुकें। अपने उपदेश मे आपको अपराधियों का पता लगाने के लिए कम शब्‍दों में बोलना होता है; और उपयाजक लंबे भाषणों पर विश्वास नही रखते। सबसे पहले मूर्खों को संबोधित करें और सबसे अंत में औरतों को। जैसे मांस किसी सैंडविच के बीच में ही होता है वैसे ही किसी भाषण में समझदारों की जगह भाषण के बीच में होनी चाहिए। हां, किसी भी ओर थोड़ा बहुत मस्‍खा लगाने में कोई नुकसान नहीं है बशर्तें आप जिसे मस्‍खा लगा रहे हैं वह ऐसी मस्‍खेबाज़ी को पसंद करता हो।

यह भी याद रहे, कि समझदार दिखना तो आसान है लेकिन समझदारी भरी बातें करना मुश्‍किल। दूसरों से कम बोलें और जितना बोलें उससे ज़्यादा सुनें; क्‍योंकि जब व्यक्ति सुन रहा होता है तो वह अपने बारे मे नहीं बता रहा होता और बोलने वाले को मस्‍खा मार रहा होता है। अधिकतर आदमियों के अच्‍छे श्रोता बनें और अधिकतर औरतों को लिखने के लिए पर्याप्त कागज़ दें और वे आपके सामने वे सब उगल देंगे जो वे जानते हैं। पैसा बोलता है लेकिन तब तक जब तक कि उसका स्वामी बड़बोला न हो और वह हमेशा औरों पर चुभने वाली टिप्‍पणियां नहीं करता हो। ग़रीबी भी बोलती है, लेकिन उसकी बातों को कोई सुनना नहीं चाहता।



Entry #6 - Points: 5
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पढ़ते हुए एक बार मुझे खयाल आया, कि कुछ लोग भाषा का प्रयोग विचारों को छिपाने के लिए करते हैं, किंतु मेरा अनुभव यह रहा है कि उनसे भी अधिक लोग भाषा का प्रयोग विचारों के स्थान पर करते हैं।

एक व्यवसायी के संवाद को किसी अन्य के बनिस्पत अधिक सरल और कम से कम नियमों द्वारा निर्धारित होना चाहिए। जैसे कि-

कहना है।

कहें।

बोलना बंद करें।

कहना क्या है- यह तय होने से पहले बात शुरु कर देना और अपनी बात कह लेने के बाद भी बोलते रह जाना एक व्यवसायी को मुकदमे में उलझाता है; अथवा उसे कंगाली के कगार पर ला खड़ा करता है और यह पहली स्थिति दूसरी तक पहुंचने का ही संक्षिप्त रास्ता है। मैं यहां एक विधि-विभाग को वहन करता हूं और इस पर मेरा अच्छा खर्चा बैठता है, लेकिन यह मुझे कानून के पचड़े से बचाता है।

रुककर फूल चुनते हुए, विद्यालयी रविवार-भ्रमण के दौरान होने वाले वार्तालाप की भांति भले ही आप एक लड़की के साथ अथवा भोजनोपरांत दोस्तों के साथ गप्पें मारें, मगर दफ्तर में आपके संवाद छोटे होने चाहिए। भूमिका तथा भाषणबाजी से बचिए और अगली बात कहने से पहले विराम लीजिए। पापियों के लिए छोटे उपदेश उचित हैं और खुद धर्माचार्य भी लंबे उपदेशों में यकीन नहीं करते। बेवकूफों से पहले कहें और सबसे आखिर में कहें महिलाओं से। सार अंश तो सदा मध्य में भी रहता है- सेंडविच में मांस की तरह। चाट कर संतुष्ट हो लेने वालों के लिए किनारे लगा मक्खन ही क्या बुरा है!

याद रखिए यह भी कि समझदार दिखना बेहतर है बजाए समझदारी की बाते करने के। औरों के बतिस्पत कम बोलिए और खुद के बोलने के बनिस्पत ज्यादा सुनिए। सुनता हुआ आदमी बोलने की थकान से बचा रहता है और सामने वाला उससे खुश होता है। पुरुषों को अच्छा श्रोता मुहैय्या किया जाए और महिलाओं को पर्याप्त कागज, तो वे अपना सब कुछ कह देते हैं। पैसा बोलता है- मगर तब तक नहीं जब तक कि उसका मालिक जबान का कच्चा न हो। फिर तो, हर कथन का तेवर आक्रामक होता है। बोलती तो मुफलिती भी है, मगर कोई इसकी सुनता कहां!



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